Tuesday 19 May 2009

वो 'मुकद्दर का सिकंदर'

प्रकाश मेहरा
(13 जुलाई 1939 - 17 मई 09)

प्रकाश मेहरा वो नाम है, जिसने न सिर्फ अपना मुकद्दर लिखा, बल्कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की तकदीर भी बदल गए। सही मायने में उन्हें 'मुकद्दर का सिकंदर' कहा जाएगा। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें हमेशा रहेंगी। जब भी लोग उनकी फिल्मों को देखेंगे, बरबस ही उनकी यादें ताजा हो जाएंगी। दर्शकों के अलावा फिल्म इंडस्ट्री भी उन्हें कभी नहीं भुला सकती है, खासकर वे लोग, जो उनके करीब रहे हैं और उनसे मिलते रहे हैं। प्रकाश मेहरा पहले ऐसे बॉलीवुड निर्देशक थे, जो हॉलीवुड के साथ एक फिल्म 'द गॉड कनेक्शन' बनाना चाहते थे। सभी तैयारियों के बाद भी वे बजट के आगे हार गए और उनका सपना पूरा नहीं हो सका। जिंदगी को अपने अलग दर्शन के जीने वाले प्रकाश मेहरा हर दिल अजीज थे। इंडस्ट्री के कुछ निर्देशकों से बात की:

प्रकाश जी का कथानक बहुत उम्दा होता था। उनकी फिल्मों के डायलॉग, कहानी और संगीत सभी कुछ अच्छा रहता था। हम उनका बहुत लिहाज करते थे। मिलने पर बड़े अदब से उन्हें नमस्कार किया करते थे और वे उसी बड़प्पन से उसका जवाब देते। सबसे बड़ी बात यह रही कि वे किसी के मोहताज नहीं थे, हालांकि इंडस्ट्री का जैसा नियम है कि एक बार इंसान फिल्में बनाना बंद कर दे, तो उसे भुला दिया जाता है, आखिरी दिनों में ऐसा ही कुछ प्रकाश जी के साथ भी हुआ। वे हमारे बड़े थे। उन्होंने और उन जैसे बड़े लोगों ने जो कुआं खोदा था, हम आज उसी का पानी पी रहे हैं।
- महेश भट्ट, निर्माता-निर्देशक

मैं उन्हें एक महान निर्देशक के तौर पर जानता था, लेकिन बहुत ज्यादा जान-पहचान कभी नहीं रही। हां, जब भी वे मिल जाते थे, हाय-हैलो हो जाया करती थी। वे बहुत ही अच्छे इंसान थे, जहां तक मैंने महसूस किया।
- श्याम बेनेगल, निर्देशक

अफसोस हो रहा है कि जिस इंसान ने जिंदगी को इतना प्यार किया, वही उनका साथ छोड़ गई। वे सदाबहार इंसान थे। मेरी उनसे तीन-चार मुलाकात हुई। एक बार उनके घर भी गया हूं। वे जितने अच्छे शख्स थे, उतने ही प्रोफेशनल भी। वे डाउन टु अर्थ थे, इसीलिए उनका दिल बहुत साफ था।
- बी. आर. इशारा, निर्माता-निर्देशक

मेरे पिता के समान थे वो। पिता जी और उनका रिश्ता बहुत गहरा था। पिता जी को सही ऊंचाई उन्होंने ही दी थी। जब से उन्होंने पिता जी के साथ काम किया था, फिर किसी के साथ काम नहीं किया। मैं छोटा था, जब पिता जी के साथ उनसे मिलने जाता था। मुझे लगता है, वे बहुत बड़े फिलोस्फर थे। जिंदगी को बहुत करीब से देखा है उन्होंने। उनकी हर फिल्म में कहीं न कहीं उन्हीं का किरदार होता था। पिता जी की मौत पर बहुत रोए थे। बोले थे, 'अंजान तुम मुझे अकेला छोड़ गए।' एक बार पिता जी बीमार हुए, तो उनकी फिल्म के एक गीत का अंतरा मैंने लिखा था।
- समीर, गीतकार

उनकी फिल्में कमर्शियल थीं, फिर भी उनमें एक मेसेज होता था। वे हटकर काम करते थे। मैं अपनी फिल्म 'चांदनी बार' के ट्रायल के बाद उनसे मिला, तो बोले, 'मधुर तुमने इतनी अच्छी फिल्म बनाई है कि मेरी आंखों में आंसू आ गए। बेटा, तुम हमेशा इसी तरह की फिल्में बनाना। कभी कमर्शियल मत होना। बहुत आगे जाओगे।' मेरी लिए ये बहुत बड़ा कंप्लीमेंट था। उनसे मेरी आखिरी मुलाकात तब हुई थी, जब मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। तब मैंने उनके पैर छुए, तो वे फिर बोले, 'मैंने कहा था न कि तू बहुत आगे जाएगा। देखा, तुझे तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।'
मधुर भंडारकर, निर्देशक