रेटिंग: *
निर्देशक: के. एस. रविकुमार
कलाकार: कमल हासन, असिन, मल्लिका शेरावत और जयाप्रदा
जिस तरह खराब फलों को बेंचने के लिए ऊपर कुछ अच्छे फल रख दिए जाते हैं, ठीक यही 'दशावतारÓ का भी हाल है। शुरुआत इतनी अच्छी है कि मन में जिज्ञासा पैदा होती है, लेकिन 10-15 मिनिट के बाद फिल्म उबाना शुरू करती है और यह सिलसिला फिल्म के अंत तक चलता है। कमल हासन ने खुद फिल्म की कहानी लिखी है पर स्क्रिप्ट इतनी लंबी और कमजोर है कि आखिर तक देखना मुश्किल होता है। इसे तमिल से हिंदी में डब किया गया है।
फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा है। कमल ने धर्म और विज्ञान को एक साथ जोडऩे की कोशिश की है। जब विज्ञान कुछ गलत प्रयोग करता है, तो ईश्वर उसे सुधारने लगता है। इंसानी पाप को प्रकृति धो देती है, फिर वह सुनामी की शक्ल में ही क्यों न हो। शुरुआत से अंत को जोडऩे और फिल्म के नाम को बताने के लिए कमल ने दस किरदार रचे, सभी किरदार उन्होंने खुद ही निभाए हैं। गैरजरूरी किरदारों की भीड़ ने फिल्म की रोचकता खत्म कर दी है। फिल्म में हिंसात्मक सीन इतने खतरनाक हैं कि एक पल को सोचने पर मजबूर होना पड़ता है।
कमल हासन एक वैज्ञानिक हैं, जो एक सभा में अपने अनुभव की कहानी सुनाते हैं। वैज्ञानिक होकर भी उन्हें जिंदगी में ईश्वरीय शक्ति का ज्ञान होता है, जिसे वे सभी को बताते हैं। किस तरह विदेशी में वे जैविक हथियार का निर्माण करते हैं, फिर कुछ लोग उसे चुराने की कोशिश करते हैं। वे उनसे बचकर भारत आते हैं, लेकिन वे कलम हासन के पीछे यहां भी आ जाते हैं। इसी जैविक हथियार को बचाने के चक्कर में कमल को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। कितने तरह के लोगों से मिलना होता है। बाद में सभी कडिय़ां आपस में जुड़ जाती हैं।
फिल्म की शुरुआत धार्मिक कहानी मालूम होती है, लेकिन बाद में विज्ञान की तरफ रुख हो जाता है। आखिर तक पहुंचते- पहुंचते न धार्मिक कहानी रह जाती है, न विज्ञान पर आधारित।
कमल ने कुछ किरदारों बहुत अच्छा अभिनय किया है, लेकिन कई किरदारों में बनावटी लगते हैं। दरअसल, इतने सारे किरदारों को निभाना भी अपने आप में एक चुनौती है, जो खुद कमल ने अपने लिए पैदा की है। असिन का काम अच्छा है, लेकिन 'गजिनीÓ के मुकाबले में कमजोर ऐक्टिंग दिखाई देती है। मल्लिका शेरावत से जबर्दस्ती अभिनय कराया गया है। उनके रोल की भी कोई जरूरत भी नहीं थी।
कैमरे का कमाल और एडिटिंग दर्शकों को बांधने में कुछ मदद करती है। विजुअल इफेक्ट्स भी अच्छे हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक दृश्यों को मजबूती देता है, लेकिन फिल्म के गीतों और संगीत में दम नहीं है।
रवि रावत
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8 comments:
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
एक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानो!!.
उपयोगी आलेख लिखा है।आभार।
लिखना तो बहुत अच्छी बात है और हम लिखने की हर कोशिश की सराहना करते हैं,किन्तु मित्र पढ़ना उससे भी अच्छी बात है .क्योंकि पढ़ कर ही आप लिखने के काबिल बनते हैं इसलिए अगर आप लिखने पर एक घंटा खर्च करते हैं तो और ब्लागों को पढने पर भी दो घंटे समय दीजिये ,ताकि आपकी लेखनी में और धार पैदा हो .मेरी शुभकामनाएं व सहयोग आपके साथ हैं
जय हिंद
narayan narayan narayan
आप सभी का बहुत- बहुत शुक्रिया। उम्मीद करता हूं कि आप सभी का सहयोंग आगे भी इसी तरह मिलता रहेगा। अल्का जी का अभारी हूं कि उन्होंने साथ में यह भी लिखा कि मुझे पढ़ते भी रहना चाहिए। बहुत खुशी हुई। मैं सफाई नहीं दे रहा हूं और न ही बढ़ाई कर रहा हूं, लेकिन मैं रोज कम से कम पांच से सात घंटे पढ़ता हूं, इसके अलावा ब्लॉग भी पढ़ता हूं, पर मैं और ज्यादा पढऩे की कोशिश करूंगा। घन्यवाद!
लगता है फिल्म देखनी पड़ेगी... क्यूंकी कमल हसन जी अपने आप मे एक सफल लेखक, निर्देशक व अभिनेता है|
जिन्होने "हे राम", "पुष्पक" , "सदमा" व चाची 420 जैसी सफल फ़िल्मे दी हैं...
धन्यवाद संगीता जी, मेरी कोशिश है कि हिंदी के पाठकों को फिल्मी दुनिया की कुछ खबरें और समीक्षाएं दे सकूं। आपको समीक्षा पसंद आई, मैं आपका आभारी हूं। आगे भी इसी तरह सहयोग देते रहिए। आप जैसे पढऩे वालों की वजह से लिखने का हौसला बढ़ता है।
लिखते रहें
शुभकामनाएं
ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।
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